‘लोक संस्कृति’ बनाम जनवादी संस्कृति

विविधता को ख़त्म करना, हर संस्कृति, हर पद्धति के विशिष्टता को मिटाना ‘मास प्रोडक्शन’ के दौर की ज़रुरत है। ऐसे समय में लोक संस्कृति को बचाना एवं उसके उत्थान पर ज़ोर देने की ज़रुरत है। इस परिवर्तनकामी परियोजना में जुड़े साथियों के लिए कॉ. निलेश पराग (देवास, मध्य प्रदेश) के कुछ सवाल।

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