ग़रीबी

धूमिल ग़रीबीएक ख़ुली हुई क़िताबजो हर समझदारऔर मूर्ख के हाथ में दे दी गई है।कुछ उसे पढ़ते हैंकुछ उसके चित्र देखउलट-पुलट रख देतेनीचे ’शो-केस’ के।

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हकीकत

रमाशंकर यादव विद्रोही हक़ीक़त कोई नंगई तो नहीं है,हक़ीक़त किसी की फ़ज़ीहत नहीं है,हक़ीक़त वही है जो ख़ुद रास आए,हक़ीक़त किसी की नसीहत नहीं है। हक़ीक़त की वारिस है ख़ुद…

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जनप्रतिरोध

रमाशंकर यादव विद्रोही जब भी किसी ग़रीब आदमी का अपमान करती है ये तुम्हारी दुनिया, तो मेरा जी करता है कि मैं इस दुनिया को उठाकर पटक दूँ! इसका गूदा-गूदा…

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