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इस पुस्तिका में अधूरी मुक्ति के दबे हुए सपने हैं। हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने जिस आज़ादी की कल्पना की थी, वो आज भी अधिकांश आबादी को हासिल नही हुई है। 73 साल बाद भी, हमारी सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक जीवन गैरबराबरी और शोषण पर आधारित है। सही माएने में आज़ादी और बराबरी के लिए आज संघर्ष में इन दबे हुए सपनों को पुनर्जीवित करने की ज़रुरत है। आइये, इस पहल में हमारे साथ जुड़े!