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रमाशंकर यादव विद्रोही
हक़ीक़त कोई नंगई तो नहीं है,
हक़ीक़त किसी की फ़ज़ीहत नहीं है,
हक़ीक़त वही है जो ख़ुद रास आए,
हक़ीक़त किसी की नसीहत नहीं है।
हक़ीक़त की वारिस है ख़ुद की हक़ीक़त,
हक़ीक़त किसी की वसीयत नहीं है,
हक़ीक़त वही है जो मैं कह रहा हूँ,
जो मैं कह रहा हूँ, यहीं कह रहा हूँ।
अभी दाब दूँ तो ज़मीं चीख़ देगी,
और अभी तान दूँ तो गगन फाट जाए,
मगर आदमी का फ़र्ज़ ये तो नहीं है,
फ़र्ज़ है कि छप्पर गिरे तो उठाए।